बिहार सरकार ने डॉक्टरी की पढ़ाई में एक बड़ा बदलाव लाने की तैयारी कर ली है। अब से, छात्र MBBS की पढ़ाई हिंदी भाषा में कर सकेंगे। ये फैसला राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया है। ये नया सिस्टम अगले साल से शुरू होगा। राज्य के बच्चों के लिए ये एक बहुत अच्छा मौका है। ये बदलाव अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होगा, जिससे आने वाले डॉक्टरों को अपनी मातृभाषा में पढ़ने का मौका मिलेगा। इससे न सिर्फ पढ़ाई आसान होगी बल्कि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में भी एक नई शुरुआत होगी।
बिहार में अगले साल से MBBS हिंदी में होगा:
MBBS की पढ़ाई हिंदी में कराने वाला बिहार देश का दूसरा राज्य बन गया है। इससे पहले मध्य प्रदेश ने ये शुरुआत की थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने इस फैसले को सोच-समझकर लिया है। सरकार ये भी देख रही है कि एमबीबीएस की हिंदी में किताबें भी मिल सकें, ताकि बच्चों को पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो। ये एक ऐसा कदम है जो न सिर्फ़ बिहार के बल्कि पूरे देश के मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में एक नई शुरुआत कर सकता है।
सरकार हिंदी भाषा को बढ़ावा देने और दुनिया में इसकी पहचान बनाने की कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में, उन्होंने एमबीबीएस कोर्स हिंदी में शुरू करने का फैसला किया है। इससे राज्य के ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों को डॉक्टर बनने का मौका मिलेगा। ये कदम पढ़ाई को और आसान और सभी के लिए खुला बनाएगा।
जिन बच्चों ने अपनी शुरुआती पढ़ाई हिंदी में की है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा मौका है। बिहार सरकार ने हिंदी माध्यम में एमबीबीएस शुरू करके भाषा की दिक्कत को दूर किया है। अब जो छात्र अपनी मातृभाषा में पढ़ना पसंद करते हैं, वे भी डॉक्टर बन सकते हैं। जल्द ही इन हिंदी माध्यम वाले एमबीबीएस कोर्सों में दाखिले शुरू होंगे। उम्मीद है कि इस बार दाखिले में बढ़ोतरी होगी।
सब कुछ अच्छे से चल सके, इसके लिए हम पाठ्यक्रम और किताबें आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय से लेंगे। यह राज्य का एक जाना-माना विश्वविद्यालय है। ऐसा करने से कोर्स की सारी किताबें हिंदी में अच्छी तरह से तैयार हो पाएंगी। इससे हिंदी माध्यम लेने वाले छात्रों को बहुत फायदा होगा। साथ ही, हम ऐसे ही टीचर चुनेंगे जिन्हें एमबीबीएस पढ़ाने का हिंदी में अच्छा अनुभव हो।
MBBS हिंदी में पढ़ाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि छात्रों को पढ़ाई में आरामदायक और कॉन्फिडेंट महसूस होगा। जब सारी मेडिकल शब्दावली और बातें उनकी अपनी भाषा में होंगी, तो वे जटिल चीजें भी आसानी से समझ पाएंगे। इससे उनकी समझ, सोचने की शक्ति और समस्या सुलझाने की क्षमता बढ़ेगी। और इससे आगे चलकर अच्छे डॉक्टर बनने में मदद मिलेगी।
अब तक हिंदी भाषी बच्चों को डॉक्टर बनने के लिए काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। क्योंकि MBBS की पढ़ाई सिर्फ़ अंग्रेज़ी में होती थी। कई बार, भाषा की वजह से बच्चों को समझने में दिक्कत होती थी। लेकिन अब बिहार सरकार ने इस समस्या का हल निकाल दिया है। उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में भी शुरू करने का फैसला किया है। इससे हिंदी भाषी बच्चे भी अच्छे डॉक्टर बन सकेंगे और उन्हें भाषा की कोई दिक्कत नहीं होगी।
बिहार सरकार ने ये फैसला करके दिखा दिया है कि वो शिक्षा में बदलाव लाना चाहती है और सभी भाषाओं का सम्मान करती है। ये कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप भी है। उम्मीद है कि दूसरे राज्य भी बिहार सरकार की तरह हिंदी के अलावा दूसरी भाषाओं में भी कोर्स शुरू करेंगे।
हिंदी और अंग्रेजी माध्यम वाले छात्रों के लिए अलग-अलग बैच बनाए जाएंगे। इससे छात्रों को अपने हिसाब से पढ़ने में आसानी होगी। साथ ही, एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में किताबें तैयार की जा रही हैं। इन किताबों को खरीदने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर टेंडर भी जारी किए गए हैं।
इससे साफ है कि बिहार सरकार ने अगले शैक्षणिक सत्र से MBBS की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने का जो फैसला लिया है, वह बहुत बड़ा कदम है। अब डॉक्टर बनने का सपना देखने वाले हर छात्र के पास बराबर का मौका होगा। बिहार ने इस फैसले से न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम की है। इससे राज्य और देश में डॉक्टरों की दुनिया में एक नई शुरुआत होगी।
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